कुम्भ मेला
हिंदुत्त्व में कुम्भ अति पवित्र तीर्थयात्राओं में से एक है| कुम्भ शब्द संस्कृत के “कुम्भ” अर्थात “घड़े” अथवा “कलश” से लिया गया है तथा “मेला” का अर्थ “उत्सव” से है इस कारण यह “कलश उत्सव” के नाम से जाना जाता है| कुम्भ मेले का इतिहास भी उतना ही पुराना है जितनी स्वयं सभ्यता, ऐसा विश्वास किया जाता है कि देवों व दानवों में अमृत कलश को लेकर युद्ध हुआ, यह युद्ध बारह दिनों व बारह रातों तक चला, इस दौरान अमृत की चार बूंदें प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक व उज्जैन में गिरीं| कुम्भ मेला इन्हीं चारों स्थानों पर बारह वर्षों में चार बार मनाया जाता है| प्रत्येक बारह वर्षों के चक्र में एक महा मेला, जिसे महा कुम्भ मेला कहा जाता है, प्रयागराज में आयोजित होता है| नाशिक में, फाल्गुन तथा चैत्र मास में (फ़रवरी, मार्च तथा अप्रैल), उज्जैन में वैशाख मास में (मई), तथा हरिद्वार में श्रावण मास (जुलाई) में कुम्भ मेला आयोजित किया जाता है| देश के विभिन्न भागों व विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं ने इसे विश्व का विशालतम मानव समागम बना दिया है| उच्चतम धर्मगुरुओं व ज्योतिषविदों का दल सूर्य, चंद्र व बृहस्पति की ग्रहीय दशाओं को देखने के बाद महाकुंभ की यथोचित तिथियों का निर्धारण करते है।